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श्रीहर्ष के उद्धरण

हे बुद्धिमती सखियों। मनुष्य का मन या तो ईश्वर के अधीन न होता या जीवात्मा के बार-बार आवर्तन होने वाले शुभाशुभ कर्मों के अनादि प्रवाह के अधीन होता है। ऐसे पराधीन मनुष्य पर आक्षेप करना उचित नहीं।