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वेदव्यास के उद्धरण

हे भारत! जो मित्र न हो, मित्र होने पर भी पंडित न हो, पंडित होने पर भी जिसका मन वश में न हो, वह अपनी गुप्त मंत्रणा जानने के योग्य नहीं है।