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हजारीप्रसाद द्विवेदी के उद्धरण

हज़ार-हज़ार जाति और उपजातियों में विभक्त, शत-शत साधु संप्रदायों द्वारा जर्जरीकृत, विविध आचार-परंपरा का तच्छिद्र कलश, भारतवर्ष!! यही क्या सत्य है? या विराट मानव-महासमुद्र भारतवर्ष, जहाँ आर्य और अनार्य, शक और हूण, सैनिक और तुरुष्क, मुग़ल और पठान एक दिन दृप्तवीर्य होकर आए और सब भूल कर एक हो रहे!!