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यू. आर. अनंतमूर्ति के उद्धरण

हर भाषा को अपने घोंसले से बाहर निकलना चाहिए। अपनी संकीर्णता को छोड़ना चाहिए। आज एक ही भाषा में जीना संभव नहीं है। अलग-अलग भाषाओं में हमें जीना चाहिए।

अनुवाद : नंदकुमार हेगड़े