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हजारीप्रसाद द्विवेदी के उद्धरण

एक जाति दूसरी को म्लेच्छ समझती है, एक मनुष्य दूसरे को नीच समझता है, इससे बढ़कर अशांति का कारण क्या हो सकता है।