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हजारीप्रसाद द्विवेदी के उद्धरण

दिल्ली में ग़ुलामों का राज्य है। सबके सब चुग़लख़ोर, चरित्रहीन, क्रूर गँवार। नाश हो जाएगा इस सल्तनत का। गाँठ बाँध लो महाराज, जिस सल्तनत में सबको अपनी-अपनी पड़ी हो, जिसमें बड़े से बड़े को अपना सिर बचाने की ही चिंता पड़ी हो, जिसमें प्रजा के सुख-दुःख से कोई मतलब ही न हो, जिसमें प्रजा के सुख-दुःख से कोई मतलब ही न हो, वह नाश के कगार पर खड़ी है। वे भाग्यहीन डंडे के बल पर राज चाहते हैं। सब नरक के कीड़े बनेंगे।