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आदि शंकराचार्य के उद्धरण

ब्रह्म का ही चिंतन, ब्रह्म का ही कथन, ब्रह्म का ही परस्पर बोधन और ब्रह्म की ही एकमात्र कामना करना इसको विद्वानों के द्वारा 'ब्रह्माभ्यास' कहा जाता है।