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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

भूगोल के अर्थ में जिसे हम बंगाल कहते हैं, उसमें कोई गहरी एकता मुझे नहीं मिलती क्योंकि बंगाल केवल मृण्मय पदार्थ नहीं है, वह चिन्मय भी है।

अनुवाद : अमृत राय