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दण्डी के उद्धरण

आज्ञा का उल्लंघन करने वाली प्रजा जो मन में आता है, बोलती है और जो मन में आता है, करती है तथा इस प्रकार सभी मर्यादाओं को अस्त-व्यस्त कर देती है। मर्यादारहित समाज इस लोक और परलोक से स्वामी और स्वयं को गिरा देता है।