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रवींद्रनाथ टैगोर के उद्धरण

आधुनिक सभ्यता रूपी लक्ष्मी जिस पद्मासन पर बैठी हुई है, वह आसन ईंट-लकड़ी से बना हुआ आज का शहर है।

अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी