आत्मकथ्य

आत्मकथा भोगे हुए जीवन का आत्मावलोकन करते हुए स्वयं के जीवन के मूल्यांकन की साहित्यिक विधा है। यह स्वयं की कथा के आश्रय से मनुष्य जीवन की जटिलता और रहस्यात्मकता, हर्ष-विषाद, जय-पराजय और आपबीती-जगबीती की संश्लिष्ट दुनिया से साक्षात्कार का उपक्रम है। वर्ण्य-विषय, चरित्र-चित्रण, देशकाल, उद्देश्य और भाषा-शैली इसके पाँच प्रमुख तत्त्व माने गए हैं। सत्यकथन, तथ्यात्मकता, अनुभूति-प्रवणता, मौलिकता, उदात्तता, समन्वय, सुसूत्रता आदि इसके प्रमुख गुण हैं। स्त्री, दलित और हाशिए के अन्य वर्गों की आत्मकथाओं के साथ इस विधा ने संवाद और विमर्श के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्त्व प्राप्त कर लिया है।

हिंदी संस्मरण साहित्य में योगदान। ‘वरदान’ कृति के लिए उल्लेखनीय।

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