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व्याकुल बार न बांधति छूटे

wyakul bar na bandhati chhute

परमानंद दास

परमानंद दास

व्याकुल बार न बांधति छूटे

परमानंद दास

और अधिकपरमानंद दास

    व्याकुल बार बांधति छूटे।

    जबतें हरि मधुपुरी सिधारे उरके हार रहत सब टूटे॥

    सदा अनमनी बिलख बदन अति यहि ढंग रहति खिलौना फूटे।

    बिरह बिहाल सकल गोपीजन अभरन मनुहु बटकुटन लूटे॥

    जल प्रवाह लोचन तें बाढ़ बचन सनेह अम्यंतर धूटे।

    परमानंद कहौं दुख कासों जैसे चित्रलिखी मति टूटे॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : अष्टछाप के कवि (पृष्ठ 108)
    • संपादक : हरगुलाल
    • रचनाकार : परमानंददास
    • प्रकाशन : प्रकाशन विभाग सूचना और प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार
    • संस्करण : 2008

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