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सुनो रमेसर!

suno ramesar!

रामशंकर वर्मा

रामशंकर वर्मा

सुनो रमेसर!

रामशंकर वर्मा

और अधिकरामशंकर वर्मा

    सुनो रमेसर!

    जहर उगलती

    यह जो चिमनी देख रहे हो

    ठीक यहीं थे बाँस छरहरे।

    कल ही तो समवेत स्वरों में

    चुरमुर करते

    बज उठते थे सहज चिकारे

    पछुआ चलते

    घुप्प अँधेरे में घँटे पर

    नीरवता के

    जब था घुग्घू चोट मारता

    सबसे पहली

    काँख दबाए हॅंसिया

    अँगनू चल पड़ता था

    कुटकी मलते

    कॅंचन कलई करने को

    खेतों में दुपहर

    चैत मास में धंस जाती थी

    अक्सर गहरे।

    छप्पर छानी थूनी बन

    अवलम्बन देने

    रक्तपात से नहीं

    कुल्हाड़ी के वे हारे

    चँदा पर आतंक राहु का

    सुघर चाँदनी

    सप्तरिशी की खाट

    व्योम मंदाकिनि की छवि

    छत पर बचपन गया देखने

    इन्हीं सहारे

    बॅंसवट की दरगाह वही

    जिस पर है भट्ठा

    भीमकाय ट्रक टैक्टर ही

    अब देते पहरे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : रामशंकर वर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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