पात भरी सहरी सकल सुत वारे-वारे

pat bhari sahri sakal sut ware ware

तुलसीदास

तुलसीदास

पात भरी सहरी सकल सुत वारे-वारे

तुलसीदास

और अधिकतुलसीदास

    पात भरी सहरी, सकल सुत वारे-वारे,

    केवट की जाति कछु वेद पढाइहौं।

    सब परिवार मेरो याही लागि, राजा जू,

    हौं दीन वित्त-हीन कैसे दूसरी गढाइहौं॥

    गौतम की घरनी ज्यौं तरनी तरैगी मेरी,

    प्रभु सों निषाद ह्वै कै बाद बढ़ाइहौं।

    तुलसी के ईस राम रावरी सौं, साँची कहौं,

    बिना पग धोए नाथ नाव चढ़ाइहौं॥

    केवट कहता है कि मेरी गृहस्थी कच्ची है, मेरे सब लड़के छोटे-छोटे हैं, केवट की जाति है कुछ वेद तो पढ़ाऊँगा नहीं। हे राजन्! मेरा सब परिवार केवल इसी के लिए है अर्थात् इसी से जीता है। मैं दीन और धनहीन हूँ दूसरी नाव कैसे गढाऊँगा? मैं निषाद होकर प्रभु से विवाद नहीं बढ़ाऊँगा, केवल इतना ही कहूँगा कि मेरी नाव गौतम की स्त्री अहल्या की तरह तर जाएगी। हे रामजी! मैं आपको शपथ-पूर्वक सच कहता हूँ कि बिना पैर धोए नाव पर चढ़ाऊँगा!

    स्रोत :
    • पुस्तक : कवितावली (पृष्ठ 29)
    • संपादक : देवीनारायण द्विवेदी
    • रचनाकार : तुलसीदास
    • प्रकाशन : एस.बी.सिंह, काशी-पुस्तक-भंंडार, बनारस
    • संस्करण : 1999

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