तरनिजा तट बंसी-ृबट कुंज पुँज बीथी

tarnija tat bansi ribat kunj punj bithi

आलम

आलम

तरनिजा तट बंसी-ृबट कुंज पुँज बीथी

आलम

और अधिकआलम

    तरनिजा तट बंसी-बट कुंज पुँज बीथी,

    बन धन जहाँ तहाँ आनंदुपयोगी हैं।

    सोई रहै ध्यान ऊधौ ज्ञान को काज कीजै,

    ये तो ब्रजवासी ब्रजराज के बियोगी हैं।

    ‘आलम’ सुकबि कहै तन बीच कान्ह छबि,

    जोग दैन आये तुम कहा हम जोगी हैं।

    जोग तौ सिखैये ताहि जोग की जुगति-जानै,

    जोग कों काज हम बंसी रस-भोगी हैं॥

    गोपियाँ कह रही हैं कि हे उद्धव! यमुना नदी का किनारा, वंशीवट, सघन कुंज और वृंदावन की गलियाँ, वन और बादल जहाँ-तहाँ आनंद देने वाले उपयोगी स्थान हैं। हमें तो हमेशा इनका ही ध्यान रहता है इसलिए हे उद्धव! हमें ब्रह्म ज्ञान से कोई वास्ता नहीं है। हम ब्रजवासी कृष्ण के वियोगी हैं। हे उद्धव, हमारे तन-मन में तो श्रीकृष्ण की छवि बसी हुई है। तुम हमें योग साधना सिखाने आए हो बताओ कि हम क्या योगी हैं? योग की शिक्षा तो उन्हें देनी चाहिए जो योग की उपयोगिता समझें और उसकी साधना कर सकें। हमारे लिए योग का कोई महत्व नहीं है क्योंकि हम तो अपने प्रिय श्रीकृष्ण की वंशी-वादन के आनंद का उपभोग करने वाले हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आलम ग्रंथावली (पृष्ठ 76)
    • संपादक : विद्यानिवास मिश्र
    • रचनाकार : आलम
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

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