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युग-सत्य

yug satya

विभा रानी

विभा रानी

युग-सत्य

विभा रानी

और अधिकविभा रानी

    रानी गै रानी

    कोना कऽ सहि गेलें स्त्रीयेसँ स्त्रीकेर अपमान?

    मातृत्वक अपमान?

    रानीत्वक अपमान?

    की तोरा नहि छलौ बूझल

    जे मनुक्खक संतान मनुक्खे टा होइत छैक

    मूस पाथर नहि!

    तहन तोहर प्रतिवादक केहरि

    कियैक शीश झुका देल

    सियार सन राजसत्ता

    दोगला राजदंडक सोझाँ?

    ककरा प्रेमे नकटी बनि कौआहँकनी कहैलें?

    रानी गै रानी

    पुरुषत्वक बोझसँ, एतेक जाँतल कियैक छलैं

    जे हबासे नहि राखलें प्रतिवादक?

    उमेदक कोन सुग्गापर!

    ओहि बेटापर जे बिंगा गेल कर्कट सन

    कुम्हारक आबामे

    तँ समइए पर उद्धार कयल

    किन्तु कलियुगकेँ एतेक आगाँ बढ़ाबऽमे

    तोहरे ने हाथ छलहु

    रानी गै रानी!

    राजत्वक-अंधत्वक आगाँ

    तोहों आँखिपर पट्टी बाँधि

    बड़की रानी सभक धधरइत ईर्ष्याक भट्ठीमे

    दम सधि झोंका गेलैं?

    केहेन अगिया बैताल भेल धधरा—

    जे आइयो ठाढ़ भेलए सुरसा रूपें

    हमरा आओरक सोझाँ

    कतेक मूढ़ हमरा आओर

    जे नाक-कान पर नहि छी करैत विरोध

    रानी,

    तोहर जीयब सबूत भेल एकर

    जे कतेक उधियायल दूध बींगल जा सकैए

    हमरा आओर पर

    कतेक उझीलल जा सकैए खौलैत जल

    युग बढ़ि गेल कएक डेग आगाँ

    गै रानी

    तोँ सभ पाछू ओकरोसँ बेसी

    आब तोरा कयल जाइत छौ जिब्बह

    मुदा तोँ एखनो चुप छें

    तहियो चुप्पे छलें

    नहि जानि रहबे कहिया धरि चुप्पे

    युग दैत रहत जन्म कतेक कतेक

    कौआहँकनीकेँ!

    स्रोत :
    • पुस्तक : इजोरियाक अङैठी मोड़ (पृष्ठ 51)
    • संपादक : माला झा
    • रचनाकार : विभा रानी
    • प्रकाशन : किसुन संकल्प लोक
    • संस्करण : 2004

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