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ये वाक्य एक कविता होना चाहते हैं

ye waky ek kawita hona chahte hain

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ये वाक्य एक कविता होना चाहते हैं। यह अनुच्छेद एक पत्र, एक प्रेम-पत्र होना चाहता है। ये सभी वाक्य तुम्हारी स्मृतियों का रक्तस्राव हैं। ये अनुच्छेद असफलताओं की दस्तावेज़ हैं। हम भाषा और आकांक्षाओं के अपने-अपने सीमांत पर खड़े एक-दूसरे को दूर से देख रहे हैं। क्या हम अपनी भाषा और आकांक्षाओं के सीमांत को पार नहीं कर सकते?

आज दिन—शनिवार।

कपड़े धुलकर बालकनी में फैलाए। अगर यह वाक्य मैं तुमसे कहता, तो तुम कहतीं—‘धुलना’ एक ग़लत शब्द है। सही शब्द है ‘धोना’।

इस दहलीज़ पर अब ख़ुद को प्रेम करने से बहुत ही उदासीन पाने लगा हूँ। जान पड़ता है कि यही आख़िरी हो, सैमुएल बेकेट की उस प्रसिद्ध कविता की तरह ‘आई मस्ट नॉट लव, इफ़ आई डोंट लव यू, आई मस्ट नॉट बी लव्ड इफ़ यू डोंट लव मी…’ लेकिन मेरे ऊपर ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं है। मुझमें अनंत उदासीनता है। रचना को जिस मूल से शुरू करो, कुछ वक़्त बाद वह मूल ही टूटकर भरभरा जाता है। किसी चीज़ को बार-बार बनाने की क़ूवत हो गर! लेकिन प्रेम को लेकर मुझमे सैमुएल बेकेट की उस कविता जितनी प्रतिबद्धता नहीं है। मुझमें बस एक उदासीनता है, पराजय-बोध और फिर-फिर असफल होने का डर है। फिर भी शायद ऐसा कहना चाहूँ—अगर कोई पूछे।

‘तुम्हारी याद आती है’—में तुम एक अमूर्त सत्ता हो गई हो। हम अपनी-अपनी आकांक्षाओं के अलग-अलग शहर में बसते हैं।

एक दिन स्वप्न में हम दोनों एक धुँध की ओर बढ़ रहे थे, यह बहुत पुरानी बात है। इस वाक्य को स्वप्नों की तरह धुँधला और ख़ाली छोड़ देते हैं… अनचले क़दमों की तरह, अनकही बातों की तरह…

कहीं कोई लकड़हारा लकड़ी काट रहा है—ठक-ठक-ठक।

कहीं कोई मछुवारा नाव तट पर बाँध रहा है।

कहीं दो प्रेमी अपना पहला प्रेम जी रहे हैं।

एक हवाई जहाज़ कितने ही लोगों को लेकर मेरे सर के ऊपर से गुज़र रहा है।

क्या हम सभी इस कविता की तरह की अनुच्छेद दर अनुच्छेद भटकते जा रहे हैं?

ये वाक्य एक कविता होना चाहते थे। ये अनुच्छेद एक पत्र, एक प्रेम-पत्र होना चाहते थे। पर ये हमारी अधूरी आकांक्षाओं का अधूरा मोंटाज़ भर बनकर रह गए। लिजलिजी भावनाओं का विजनेट। असमर्थताओं का प्रमाण-पत्र। अपूर्णताओं की चीख़। भावुकताओं की गुहार। जीवन-मनुहार।

स्रोत :
  • रचनाकार : आदित्य शुक्ल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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