यह लखनऊ है—एक

ye lakhanuu hai—ek

कौशल किशोर

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यह लखनऊ है—एक

कौशल किशोर

और अधिककौशल किशोर

    यह लखनऊ है

    अट्ठारह सौ सत्तावन में जहाँ लड़ी गई

    आज़ादी की सबसे बड़ी लड़ाई

    जहाँ दर्ज़ है

    बेगम हज़रतमहल से लेकर उदा देवी तक

    सिकंदराबाद से लेकर काकोरी तक

    बहुत से गुमनाम

    उनके संघर्ष और शहादत की गाथा

    चप्पे-चप्पे में

    हवा में तैरती

    गदर के फूलों की ख़ुशबू

    अब भी मिलते हैं दीवारों पर

    गोलियों-छर्रों के जीवित निशान

    यह इमाम का घर

    मस्जिदों, मक़बरों, मजारों, मंदिरों से मिलकर

    बनी सियामी तहज़ीब

    कहीं अज़ान तो

    वहीं पास गूँजती

    घंटियों की आवाज़

    यह लखनऊ है

    जिसके दिल में बसता है

    नागर जी का चौक

    यही-कहीं रहती थी ‘ये कोठेवालियाँ’

    देर रात तक फ़िज़ा में गूँजती

    उनके घुँघरुओं की आवाज़ें

    उनकी सिसकियाँ

    हवा में तैरती

    मुँह में पान का बीड़ा दबाए

    लोगों की बतकही, दिल्लगी

    हँसी-ठिठोली, चुहलबाजी

    लोग ऐसे

    कि पतंगबाजी और कौवेबाजी में

    अपनी जान लड़ा देते

    एक-दूसरे को मरने-मारने पर उतारु

    फिर मिलकर गाते

    भंग के नशे में मदमस्त

    मीर की मज़ार है यहीं कहीं दफ़न

    इन गलियों में चहल करते हुए

    ग़ालिब ने कई शेर कहे

    खंडहर-ही-खंडहर

    यह रिफ़ाए-आम-क्लब है

    जहाँ से़ शुरू हुई थी तरक़्क़ी पसंद तहरीक़

    मुंशी प्रेमचंद ने दी थी वह तक़रीर

    जो तारीख़ नहीं तवारीख़ है

    भगवती बाबू की चित्रलेखा

    यशपाल का विप्लव प्रेस

    ये सब उस पेड़ की डालियाँ हैं

    जिन्हें हमने लखनऊ से जाना है

    यह अकथ-कथा है

    जो शुरू होती है

    पर ख़तम नहीं होती।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कौशल किशोर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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