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यादें

yaden

अरविंद यादव

और अधिकअरविंद यादव

    हर पल टहलती हैं तुम्हारी यादें

    मेरे हृदय में

    और जाने कहाँ-कहाँ ले जाती हैं मुझे

    खींचकर अपने साथ

    कभी बडे़ शहर के बड़े लॉन में

    जहाँ बैठा देख शायद जलकर

    भाग जाता था सूर्य भी

    बैठने को प्रियतमा की गोद में

    कभी उस छत पर

    जहाँ से देखते थे सुबह-शाम

    वह शहर और शहर का नज़ारा

    जो अब लगता है एक अधूरा-सा ख़्वाब

    कभी नूतन वर्ष में ग्रीटिंग की उस दुकान पर

    जहाँ जाने कितने व्यथित चेहरे

    रहते थे खड़े करने को दीदार

    अपने चाँद का

    कभी आइसक्रीम की दुकान

    तो कभी चाऊमीन की ठेल

    जिन्हें देखकर आज भी भर जाता है मन

    एक अपूर्ण रिक्तता से

    चार होती आँखों की

    स्कूल की क्लास की वह बेंच

    जहाँ पहुँच जाता हूँ आज भी

    सोचकर तुम्हें

    आज सोचता हूँ तो बस यह

    कि अब तुम क्यों नहीं

    क्यों चलीं आती हैं,तुम्हारी यादें

    अकेली, बिना तुम्हारे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अरविंद यादव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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