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विस्मृति

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सपना भट्ट

अन्य

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सपना भट्ट

विस्मृति

सपना भट्ट

और अधिकसपना भट्ट

    विस्मृति से बड़ी कोई औषधि नहीं

    मन से निरंतर रिसते याद के घाव पर

    उसी का लेप हो तो प्राण बचते हैं

    मेरे जन्मचक्र में किंतु तुम्हारा स्मृति-दोष है।

    दिन की कोई घड़ी हो, रात का कोई पहर

    मन के कोमल तंतुओं को काटती

    तुम्हारी याद की छुरी रुकती नहीं

    उधर प्रेम के क्रूर ग्रहों को अश्रुओं का अर्घ्य चढ़ता है

    इधर मैं सूखती चली जाती हूँ।

    हे देवो, गंधर्वो, किन्नरो, नवग्रहों, दसों दिशाओ;

    तुमने कहीं देखी है क्या!

    दुष्यंत की दी अंगूठी मुझसे कहीं खो गई है

    मैं अपने ही बियाबान में भटक रही हूँ—

    अभिशप्त और अकेली

    पीठ पर कामनाओं की शिला बाँध

    मुक्ति के ऊँचे बहुत ऊँचे

    पहाड़ पर चढ़ना आसान नहीं

    मैं तुम्हारी याद का भारी पत्थर पीठ पर नहीं

    सीने पर बाँधे जाने कितने जन्मों की असंभव यात्रा पर हूँ

    कहते हैं, कुछ यात्राएँ कभी पूरी नहीं होतीं,

    कहते हैं, कुछ यात्री कभी कहीं नहीं पहुँचते!

    स्रोत :
    • रचनाकार : सपना भट्ट
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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