वह मैं ही था

wah main hi tha

सुखचैन

सुखचैन

वह मैं ही था

सुखचैन

और अधिकसुखचैन

    वह मैं ही था

    जिसने हेराफेरी, बेईमानी

    और कुनबा-परवरी के आगे

    अस्तित्वहीन होकर

    फेंक दिए थे हथियार

    वह मैं ही था तीरंदाज़, बाहुबली

    अर्जुन, जिसने अन्याय के सम्मुख

    धुरंधर ऋषियों, पुरखों की

    आडंबरी विद्वता से आतंकित होकर

    आत्मसमर्पण करना चाहा था

    और फिर आए भगवान कृष्ण

    मुझे उन्होंने जगाया नींद से

    कृष्ण ने समझाया, सँभाला मुझे

    अपनी कृपादृष्टि से

    कृष्ण ने मुझे शिक्षा दी

    स्वाभिमान और इज़्ज़त का पाठ

    प्रत्यक्ष बताया मुझे कृष्ण ने

    द्रोपदी का निर्वस्त्र होना और लाज बचाना

    कृष्ण ने ही किया मुझे

    विद्वता के आडंबर से भयमुक्त

    भगवान ने मुझे कहा

    अपने-आप से पार जाने के लिए

    आने वाले लोगों को

    खुला छोड़ने को

    युद्ध आवश्यक है

    वह मैं ही हूँ जो लड़ता बार-बार

    कृष्ण की छाया में

    परिवारवाद, फ़रेब

    और आडंबरी विद्वता के ख़िलाफ़

    मैं ही था जिसने

    आकाश को लगाई थी आग

    अपने तूफ़ानी तीरों के साथ

    वह मैं ही था

    जिसने उड़ाए थे सिर

    दंभी ऋषियों के।

    बाबा फ़रीद के श्लोकों में गूँजता

    दुख, मैं ही तो हूँ

    भगत कबीर ने तानापेटा लगाते

    पढ़ाया था मुझे ही

    पाखंड के परखच्चे उड़ाने का पाठ

    गुरु अर्जुन मुझे ही देकर गए थे

    वे शब्द

    जिन्हें पढ़ते-सुनते

    मनुष्य अमरत्व पा जाता है

    गुरु गोबिंद का भाई कन्हैया

    मैं ही तो था

    आप मुझे जगह-जगह मिल सकते हैं

    बाणों के साथ अन्याय को बींधते

    घायलों की मरहम-पट्टी करते

    शब्द का सम्मान सुरक्षित रखते हुए

    श्लोकों में गूँजते दुख को सुनते हुए

    भारी-भरकम आडंबरी विद्वता को

    हथेली पर टिका

    फूँक मारकर उड़ाते हुए

    अपने पसीने की बूँदों से

    दूध-सी गंध सूँघते-सुँघाते

    प्यार से लबरेज़

    मस्ती में नाचते-नचाते हुए

    आप जिस आदमी को भी मिलोगे

    वह मैं ही होऊँगा

    वह मैं नहीं, आप स्वयं होंगे

    वस्तुत:

    मैं तो बार-बार

    जीतकर भी हार जाता हूँ

    और हो जाता हूँ

    अधिक बेचैन

    आर उदास।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 483)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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