Font by Mehr Nastaliq Web

विश्वासघात (दू)

vishvasghat (doo)

गंगेश गुंजन

अन्य

अन्य

गंगेश गुंजन

विश्वासघात (दू)

गंगेश गुंजन

और अधिकगंगेश गुंजन

    गंगाकातमे

    मुर्दघट्टीपर एकटा खोपड़ी ठाढ़ कऽ

    हरेक अगिला चिताक पुछारी रखने

    जीवन मानि बैसल छी।

    अहाँक दुःखकेँ सोचि

    दुखी हएब नहि रहल अछि

    आब हमर सुख—

    अहाँक अपस्यांत दुःखक सूचनाक सुख भऽ गेल अछि।

    अभिशाप अंगीकार कऽ

    आइ पापी व्यतीत

    बेशी पुण्य भरल लगैत

    हमरासँ कतेक यात्रा करबबैत अछि।

    अभिशाप समाप्त होइ तक श्मशान

    गंगाकातसँ बस्ती धरि पहुँचि जायत।

    आव हमरा श्मशानकेँ गाँव पहुँचैक भय नहि अछि,

    जिज्ञासा सठि जयबाक अछि

    एहन सठल कोय जानि नहि केहन होइत होयत।

    सड़क सभपर भोर करैत

    गली कुचीमे साँझ धेरैत

    यात्रावाही प्राणकेँ

    व्यर्थ लगैत छैक,

    कोनो प्रश्न, कोनो पर्याय।

    गप्प करैत-करैत मुना जाइत पपनी जकाँ

    कटु तंद्रिल जीवनकेँ मानब, नहि मानब

    केवल एक बात—पर छैक

    ओहि बातपर

    जे मुर्दघट्टीसँ नहि उठल रहैक,

    मुदा मुर्दघट्टीएक भऽ कऽ हमरा संग

    सभ क्षणक अंतिम तहमे

    सटि कऽ रहि रहल अछि।

    श्मशान,

    गंगाकातसँ गाम तक पहुँचत।

    हरेक निशा महानिशा भावसँ

    अबैत अछि,

    हमरा देखाइ पड़ै तछि बीच धार—

    कोनो वीभत्स माँसपिण्ड दहाइत

    आओर लोल गड़बैत

    डगमग दत्तचित्त कारी कौवा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : मैथिलीक नव कविता (पृष्ठ 146)
    • संपादक : रामकृष्ण झा ‘किसुन’
    • रचनाकार : गंगेश गुंजन
    • प्रकाशन : सांस्कृतिक विभाग, सुपौल, बिहार
    • संस्करण : 1971

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY