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वॉइसनोट

vauisnot

शैरिल शर्मा

शैरिल शर्मा

वॉइसनोट

शैरिल शर्मा

और अधिकशैरिल शर्मा

    वो वॉइसनोट भेजता है

    जब मैं कुछ नहीं कहती

    चाय की खदखदाहट,

    बर्तनों की टकराहट,

    उबलती अदरक का भभकना

    और थकान की आह।

    ये सब आवाज़ें

    शब्द नहीं होतीं

    फिर भी

    कितनी बातें कह जाती हैं।

    मैं सुनती हूँ

    और चुप रहती हूँ

    जैसे पुराने रेडियो में

    कोई ट्यूनिंग ठीक से मिले

    पर एक धुन छुपी हो कहीं।

    कभी वह कोई गीत गुनगुनाता है

    जिसके बोल अधूरे होते हैं

    जैसे सपना टूटा हो,

    या नींद में कोई नाम पुकारा गया हो।

    ‘सुना?’ वो पूछता है

    और मैं

    अपने कान नहीं,

    दिल छूकर सुनती हूँ।

    जहाँ उसकी थकी हुई साँसें

    बिलकुल साफ़ सुनाई देती हैं।

    जब मैं मौन होती हूँ,

    वह कुछ नहीं कहता।

    सिर्फ़ एक साँस भेज देता है

    जिसमें मैं अपने होने की जगह पा लेती हूँ।

    कभी कहता है

    ‘कुछ भी कहो,

    हाँ, हूँ, कुछ भी...’

    उसे मेरी आवाज़ चाहिए

    जैसे सूखी ज़मीन को पहली बारिश।

    मैं कुछ कहती नहीं

    पर अपनी चुप्पी में

    उसे भर देती हूँ

    जैसे उबलती चाय में

    पत्ती नहीं, प्रतीक्षा घुली हो।

    एक दिन

    वह कविता भेजता है

    ‘तुम धूप नहीं हो,

    पर तुम्हारे बिना

    सर्दियाँ पूरी नहीं होतीं।’

    मैं उस पंक्ति को

    बार-बार सुनती हूँ

    जैसे कोई बंद खिड़की

    हर बार खुलने का सपना देखे।

    शब्दों से ज़्यादा

    उनके पीछे की ख़ामोशी सुनती हूँ

    जहाँ प्रेम नहीं,

    एक झिझक पल रही होती है।

    और तब समझ आती है

    कुछ रिश्ते

    धूप नहीं माँगते,

    बस एक धीमी आँच पर

    पकते रहते हैं,

    बिना किसी मौसम को जिए।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शैरिल शर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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