उसका कोई नहीं

uska koi nahin

प्रज्ञा सिंह

प्रज्ञा सिंह

उसका कोई नहीं

प्रज्ञा सिंह

और अधिकप्रज्ञा सिंह

    उसे कहना चाहिए

    माननीय प्रधानमंत्री जी

    वो कहती है मोदिया योगिया

    भाषाई तमीज़?

    मैं किसी से पंगा नहीं लेना चाहती

    आपसे भी नहीं

    बहुत सर दर्द हो तो आदमी को

    बाम लगा लेना चाहिए

    चार पैसे ख़र्च कर के

    आप सौ तरह का आराम ख़रीद सकते हैं

    लोकतंत्र भी न्याय भी

    फिर हर बात आपके लिए

    बेकार की बात हो जाती है

    बकवास वाहियात फ़िज़ूल

    कविता में इस बतकही का क्या मतलब है

    कि आप मुझसे अच्छा लिखते हैं

    एक दियासलाई भर आग

    आपके पास है मेरे पास

    वह फिर कहती है

    मोदिया योगिया

    और तेज़ हो रहा है तूफ़ान

    बस्ती में आग

    ऐंठती हैं अतडियाँ

    आदमी सहारे के लिए

    जिस किसी संस्था का हाथ पकड़ता है

    वही हाथ झटक देती है

    धूल धूसरित आदमी

    संविधान की प्रतियाँ बाँचे या गीता की

    चाटने तो उसे

    इनके उनके तलवे ही हैं

    यहाँ वहाँ बिखरे पड़े महामहिम भगवान

    बड़े बड़े पत्थर ट्रकों में लदे आते हैं

    या फिर एसी गाडियों में

    बोरे की तरह लदे आते हैं अधिकारी

    ऊँचे दाम बिकते हैं

    मोदिया योगिया

    ग़रीबन केहू नाहीं

    वह फिर कहती है

    बार बार कहती है

    भाषिक तमीज़?

    मैं अगर किसी तरह का

    जोख़िम उठा पाती तो कहती

    भले तुम्हें हस्पताल से दवाई नहीं मिली

    आठ सौ तिरपन की ख़रीदनी पड़ी

    दो सौ दलाल दिखाने के नाम पर ले गया

    तुम्हारे गोलुआ को बैठने के लिए

    स्कूल में फटा टाट भी नहीं मिले

    कोटे की दुकान पर राशन मिले

    कांशीराम आवास की बिल जमा पर करने पर

    काट दी जाए लाइट

    भले ही सीवर की सारी गंदगी से भठ जाए

    तुम्हारा घर

    तुम्हें अपनी औक़ात में रहना चाहिए

    तमीज़ से कहना चाहिए

    माननीय प्रधानमंत्री जी!

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रज्ञा सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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