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उपक्रम

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बिभूति आनंद

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बिभूति आनंद

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बिभूति आनंद

और अधिकबिभूति आनंद

    अहाँक रूप हमर कल्पनामे

    कोनो उदार देबाल जकाँ उतरैत छल

    जे बिनु कोनो विरोधक अपन करेजसँ

    असंतोषक कथा कहैत अछि।

    मुदा अहाँक सभटा अथ-इति

    सौतिनसँ झगड़ाकऽ कऽ भागलि जाइत

    कोनो मौगीक मूँह सन प्रदर्शित होइत रहल।

    हम तँ कल्पना-भुवनमे

    युवावस्थाक देहरिपर ठाढ़ भेल देखने रही

    जे अहाँ हमर बामांगी बनलि

    झरियाक कोइला-खदाममे

    आकि

    टहकैत दुपहरियामे

    कोनो फाँकमे हकमैत-हँसैत रहब।

    ओतहि कत्तौ फर्दमे

    पाँच बरिसक बचबा/दू हाथक करचीमे

    हमर ललकी गमछीकेँ बान्हि

    नारा लगबैत रहत

    —इनकिलाब-जिन्दाबाद।

    दस बरिसक होइत बचबाकेँ

    नारा लगयबाक जुर्ममे/पुलिसक हंटरसँ

    खाइत मारुक मारि

    देखैत रहब दुन गोटे एहि अपेक्षाक संग

    जेना वंदनीय बन्धु कोनो

    फाँसी झुलैत काल

    सोझामे परिवारकेँ ठाढ़ देखैत हो।

    बीस बरस होइत बचबाकेँ देखने रही, जे

    कोनो जेठरैयत-गोत्री व्यक्तिक हत्याक आरोपमे

    चौबटियापर ठाढ़कऽ कऽ

    व्यवस्थाक गोलीसँ दागल जाइत हो

    मुदा कल्पना आइ

    साइत भरमा तँ ने रहल अछि!

    जेठरैयत बाबी जकाँ बन्हकी लैत बर्त्तन-जात

    आकि ड्योढ़ा-सबैया पर लगबैत रुपैया लेल

    किये रहैत छी अपसियाँत?

    किये ढुनमा-बेटाकेँ

    तीन-तीन दिन लगाति बेगारी खटा लैत छियै?

    बेर-बेर हमर दर्दकेँ खोधैत छी

    बड़द कोनो, आकि घोड़ाक खूढ़मे

    नाल जकाँ ठोकैत छी

    साइत, तेँ नहि बुझि पबैत छियै, जे

    कोनो गामक वा घरक/देशक वा विदेशक

    करेज-बीच की सुनगि रहल छै

    फुसिये कुनैन खयने रहैत छी

    जे हम किये रातिकऽ नारा लिखैत छी

    आकि मिटीनमे जाइत छी

    आकि अहाँसँ गुप्त राखि किदन-की करैत रहैत छी!

    से अहाँकेँ सोचैत

    कोनो नेनाक मोन सन स्वच्छ हमर कल्पना

    अखाड़क झाँट सन भऽ जाइत अछि, जे

    एहि संक्रान्ति-कालमे

    लोकक मोनमे घून किए लगैत छै?

    मखान जकाँ हँसैत

    सद्यः प्रस्फुटित कोनो कली जका चंचल

    सुनू यौ हमर अपन वर्ग!

    अहाँ दिबारीक टेमी जकाँ किये छी?

    धरती-तलसँ कतोक गुण बेसी धधकैत

    हे हमर भुतिआयल समूह—

    अहाँ ज्वालामुखी जकाँ किये ने फुटैत छी?

    प्रत्येक ठोक लेल थोड़े गलती अपवाद होइछ

    'ओ' तँ अवलम्ब मात्र छलीह

    कल्पना हमर गाछक छाहरि अछि

    कल्पना हमरे नहि/सभक यथार्थ अछि

    से ओहि यथार्थक स्वरकेँ मुखरित करैक लेल

    किये ने करी/आकि करैत छी

    समूह-गीतक तैयारी

    अखबार व्यवसाय छी/व्यवसायमे झूठ धर्म होइछ

    अखबार आम लोकक मोनक नसबन्दी करैछ

    आउ ने समूह-गीतक तैयारीमे

    तखन दृष्टि-पथपर दौगत

    ठाम-ठामक धधकैत पत्र

    तखन ने बुझबै अपन बासक/प्रवासक समाचार

    इनकिलाब आरम्भ छै/समूह-गीत आरम्भ छै

    झरियाक खदानसँ गामक सलहेस-थान धरि

    जिन्दाबाद आरम्भ छै

    जेठरैयत-गोत्रीकेँ बन्दूकक लाइसेंस भेटि रहल छै

    न्यायालय

    कुकुर जकाँ भुकैत नाङरि डोलबैत अछि

    सिपाहीक सजगता देखिते बनैत अछि

    खरीदबाक/ठकबाक क्रम चालू छै

    हत्या, अगिलग्गी...आरम्भ छै

    एकटा

    संभाव्य युद्धक

    तैयारी भऽ चुकल छै।

    स्रोत :
    • पुस्तक : उपक्रम (पृष्ठ 27)
    • रचनाकार : बिभूति आनन्द
    • प्रकाशन : भवानी प्रकाशन
    • संस्करण : 1984

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