उन हाथों से परिचित हूँ मैं
un hathon se parichit hoon main
हाथ जिन्हें क़लम और कलछुल की पहचान मालूम है
मालूम है जिन्हें सब्ज़ियों का स्वाद
भात की गर्मी पहचानते हैं जो
रोटी और किताब का मतलब जानते हैं ठीक-ठाक
उन्हीं हाथों की दी हुई दवा से ज़िंदा हूँ मैं
ज़िंदा हैं मेरी उम्मीदें।
ख़तरे में पड़ी अगर उन हाथों की पहचान
वक़्त का माथा ठनक सकता है
धड़क सकता है ज़मीन का सीना।
ग़लत कामों में लगाया गया उन हाथों को जिस दिन
भूख के दाँत निकल आएँगे दिन-दहाड़े
बीमारियों के जबड़े खुल जाएँगे सरे-शाम।
ग़लत हाथों में दिए गए अगर वे हाथ
क़लम की निब और कलछुल की डाँड़ी टूट जाएगी
बिगड़ जाएगा सब्ज़ियों का स्वाद
ख़त्म हो जाएगी भात की गर्मी
रोटी और किताब के अर्थ का अनर्थ हो जाएगा।
उन हाथों से परिचित हूँ मैं
परिचित हूँ हथेलियों की एक-एक लकीर से।
स्रोत:

उन हाथों से परिचित हूँ मैं (Pg. 43)
- लेखक: शलभ श्रीराम सिंह
-
- संस्करण: first
- प्रकाशक: रामकृष्ण प्रकाशन
- प्रकाशन वर्ष: 1993
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