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उन दिनों

un dinon

मधु सिंह

अन्य

अन्य

मधु सिंह

उन दिनों

मधु सिंह

और अधिकमधु सिंह

    वाह! उन दिनों

    फूल कितने सुंदर थे

    ऐसा नहीं है कि

    अब वे सुंदर नहीं हैं

    ये उन स्त्रियों की तरह हैं

    जिनकी आज़ादी क़ैद है

    किसी तहख़ाने में

    जहाँ अब वे

    सपनों की भट्टी जला

    उन पर सेंक रही हैं रोटियाँ

    उठा रही हैं दूसरों के नख़रे

    ढो रही हैं उनके हुक्म

    वे भूलती जा रही हैं

    ठहाका लगाना

    सपने देखना

    आज ही तो

    कह रही थी वह स्री

    मैं लिखना चाहती हूँ कविता

    उमड़ रही थी उसके मन में

    विचारों की लड़ियाँ

    फूट पड़ी थी अनजाने ही

    वो बातें

    सखियों की मुलाक़ातें

    छत से छाँकती आँखें

    वह बंदियों के तहख़ाने से

    निकलना चाहती थी बाहर

    वह शब्दों के रंगों से

    आँकना चाहती थी ख़ुद की मुस्कुराती तस्वीर

    हालाँकि

    एक दिन कमसिन उम्र में

    उसे बिठा दिया गया डोली में

    अब उसे सपने नहीं

    गृहस्थी संभालनी थी

    गृहस्थी की गाड़ी को खिंचने में

    बनना था पहिया

    और इस बोझ से

    उनके नाज़ुक कंधे

    अक्सर सपने ढोने से

    करने लगे इंकार

    उसकी आँखों से

    उन दिनों की चमक ग़ायब थी

    सपने देखने वाली लड़की

    अब ख़ामोश थी

    असल में उसकी कही बातें

    टंग गई थी बीच में

    पति और भाई

    हो चुके थे बहरे

    माँ आईना बन चुकी थी

    उसकी कविता के अनकहे शब्दों की भ्रूण हत्या हो चुकी थी

    बस उसके भीतर

    बची थी

    उन दिनों की आहटें

    स्रोत :
    • रचनाकार : मधु सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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