उड़ते हुए जलद, दल-बादल बिखरे जाते सारे
uDte hue jalad, dal badal bikhre jate sare
अलेक्सांद्र पूश्किन
Alexander Pushkin
उड़ते हुए जलद, दल-बादल बिखरे जाते सारे
uDte hue jalad, dal badal bikhre jate sare
Alexander Pushkin
अलेक्सांद्र पूश्किन
और अधिकअलेक्सांद्र पूश्किन
उड़ते हुए जलद, दल-बादल बिखरे जाते सारे
ओ संतप्त, उदास सितारे, ओ संध्या के तारे!
रजत-रुपहले मैदानों को किरण तुम्हारी करती
काले शृंगों में, खाड़ी में रंग रुपहला भरती।
ऊँचे नभ में तेरी मद्धिम लौ है मुझे सुहाती
सोये हुए हृदय में मेरे चिंतन, भाव जगाती,
याद उदय-क्षण मुझे तुम्हारा, नभ दीपक पहचाने
उस धरती पर जहाँ हृदय बस, सुख-सुषमा ही जाने,
जहाँ घाटियों में अति सुंदर, सुघड़ चिनार खड़े हैं
जहाँ ऊँघती कोमल मेंहदी, ऊँचे, सरो बड़े हैं,
जहाँ दुपहरी में लहरों का मंद, मधुर कोलाहल
वहीं, कभी पर्वत पर अपना हृदय लिए अति आकुल,
भारी मन से मैं सागर के ऊपर रहा टहलता
नीचे, घाटी के प्रकाश को तम जब रहा निगलता,
तुम्हें ढूँढ़ने की उस तम में युवती दृष्टि घुमाए
तुम उसके हमनाम यही वह सखियों को बतलाए।
- पुस्तक : अलेक्सान्द्र पूश्किन चुनी हुई रचनाएँ (खंड-1) (पृष्ठ 11)
- रचनाकार : अलेक्सान्द्र पूश्किन
- प्रकाशन : प्रगति प्रकाशन, मास्को
- संस्करण : 1982
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.