टूटना

tutna

कुलदीप कुमार

और अधिककुलदीप कुमार

    प्रेम अंधा नहीं होता

    प्रेम में हम अंधे होते हैं

    जो नहीं भी होता आस-पास

    हमें उसकी भी आवाज़ आने लगती है

    जिसके आने की कोई उम्मीद नहीं

    उसके क़दमों की आहट भी सुनाई देने लगती है

    झलक दिख जाती है उसकी भी

    जो कभी यहाँ आया ही नहीं

    जिसने कभी सोचा तक नहीं हमारे बारे में

    हम अचानक उसकी बातें करने लगते हैं

    उससे बातें करने लगते हैं

    देर-देर तक

    ख़ामोश बैठे हुए

    जिन दीवारों से कोई आवाज़ टकरा कर नहीं लौटती

    हम उन दीवारों से ही टकराने लगते हैं

    मुस्कुराते-मुस्कुराते

    सुबकने लगते हैं बात-बेबात

    प्रेम पागल नहीं होता

    प्रेम में हम पागल होते हैं

    बेवक़ूफ़ियाँ करते हैं जाने-बूझते

    शर्मिंदा हो जाते हैं बिना ग़लती जाने ही

    जानकर भी गिर पड़ते हैं मोह के अंगारों भरे कुएँ में

    स्मृतियाँ भी धोखा देने लगती हैं

    याद नहीं रहता दो मिनट पहले क्या कहा था

    और हमेशा याद रहता है

    जो कभी नहीं कहा

    आँखें किसी भी दिशा में ताकने लगती हैं

    कान कोई भी आवाज़ सुनने लगते हैं

    चारों ओर कितना भी शोर मचा हो मन में घुप्प सन्नाटा छाया रहता है

    टूटते हैं जाने कितने आईने

    दरकती हैं जाने कितनी शक्लें

    बरसते हैं जाने कितने बादल

    तरसते हैं जाने कितने मरुस्थल

    प्रेम नहीं टूटता

    किसी को तोड़ता है

    हम ही टूटते हैं

    हम ही तोड़ते हैं प्रेम को

    स्रोत :
    • रचनाकार : कुलदीप कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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