तुमको पाना है अविराम

tumko pana hai awiram

शमशेर बहादुर सिंह

शमशेर बहादुर सिंह

तुमको पाना है अविराम

शमशेर बहादुर सिंह

और अधिकशमशेर बहादुर सिंह

    तुमको पाना है, अविराम

    सब मिथ्याओं में,

    मेरी सत्य!

    मुझसे दूर अलग जाओ।

    मुझको छोड़ दो

    कहीं मुझको छोड़ दो

    तुम्हें मेरे प्राणों की सौगंध।

    जाओ

    किंतु मुझसे बसकर

    सुगंध की तरह

    मेरे साथ

    मैं हवा की तरह अदृश्य ही जब हो जाऊँ

    जहाँ कहीं जाओ।

    तुम मुझको दो

    अपना रूप

    अपना मद

    अपना यौवन

    अपनी शक्ति

    अपनी माया

    अपना प्रेम छल

    अपना सत्य—मेरा!

    मेरी ही केवल तुम

    मेरे साथ रहो

    मुझको छोड़ो नहीं

    स्वप्न में भी,

    तुमको

    मेरे प्राणों की शपथ

    मलूँगा मैं वक्ष से तुम्हारे

    अपने जीवन का समस्त वक्षस्थल

    लिपटूँगा मैं अंग-अंग से तुम्हारे

    मधुरतम सुवास बन

    उच्च से उच्चतर मैं हूँगा तुम्हारे ब्रह्मांड में—

    तुम्हारे हृदय में—

    तुम्हारा ही बनूँगा मैं, केवल तुम्हारा।

    हूँ मैं तुम्हारा उपेक्षित भाव

    सुधर-सा रहा हूँ पर धीरे-धीरे

    अंगीकृत होने।

    मेरी सुख,

    मेरी समस्त कल्पना के पीछे एक सत्य

    मुझ उपेक्षित को स्नेह स्वीकृत करो

    मेरे जीवन की सुख

    सरल सहवास का सौंदर्य

    मधुर ऐक्य सुख।

    स्रोत :
    • पुस्तक : टूटी हुई, बिखरी हुई (पृष्ठ 72)
    • संपादक : अशोक वाजपेयी
    • रचनाकार : शमशेर बहादुर सिंह
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2004

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