तुम्हारी याद

tumhari yaad

ममता बारहठ

ममता बारहठ

तुम्हारी याद

ममता बारहठ

और अधिकममता बारहठ

    काँच की तरह

    टूटती है मुझ पर

    तुम्हारी याद

    देखती हूँ ख़ुद को

    एक साथ कई टुकड़ों में

    याद में तुम्हारी

    अपने ही हाथों

    उठाती हूँ टुकड़े अपने

    तुम्हारी याद से निकलती हूँ जब भी

    असंख्य पेड़ों से भरा

    एक भयानक जंगल

    उठ खड़ा होता है

    मेरे शरीर पर

    जहाँ उजाले का क़तरा भर नहीं

    आसमाँ कहीं नहीं

    मैं अचानक ज़मीन के

    उस हिस्से में बदल जाती हूँ

    जिसने कभी सूरज नहीं देखा

    जहाँ जाते मन डरता है

    बन जाती हूँ संसार की वह जगह

    जो सिर्फ़ गुज़रने के काम आई

    जिस पर आकर

    कभी कोई ठहरा नहीं

    पंछी यहाँ ऊँचा उड़ने की कोशिश में

    टकराते है मेरी सीमाओं से

    किसी शाप की तरह

    मेरे ही बदन पर बिखरते हैं

    छींटों की तरह पंख उनके

    उठकर चलती हूँ तुम्हारी याद से ऐसे

    जैसे काटती हूँ पुराने दरख़्तों-झाड़ियों को

    खोजती हूँ रास्ता

    साँसों का

    जीवन का!

    स्रोत :
    • रचनाकार : ममता बारहठ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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