तुम्हारी जेब में एक सूरज होता था
tumhari jeb mein ek suraj hota tha
तुम्हारी जेबों में टटोलने हैं मुझे
दुनिया के तमाम ख़ज़ाने
सूखी हुई ख़ुबानियाँ
भुने हुए जौ के दाने
काठ की एक चपटी कंघी और सीप की फुलियाँ
सूँघ सकता हूँ गंध एक सस्ते साबुन की
आज भी
मैं तुम्हारी छाती से चिपका
तुम्हारी देह को तापता एक छोटा बच्चा हूँ माँ
मुझे जल्दी से बड़ा हो जाने दे
मुझे कहना है धन्यवाद
एक दुबली लड़की की कातर आँखों को
मूँगफलियाँ छीलती गिलहरी की
नन्ही पिलपिली उँगलियों को
दो-दो हाथ करने हैं मुझे
नदी की एक वनैली लहर से
आँख से आँख मिलानी है
हवा के एक शैतान झोंके से
मुझे तुम्हारी सबसे भीतर वाली जेब से
चुराना है एक दहकता सूरज
और भाग कर गुम हो जाना है
तुम्हारी अँधेरी दुनिया में एक फ़रिश्ते की तरह
जहाँ औंधे मुँह बेसुध पड़ी हैं
तुम्हारी अनगिनत सखियाँ
मेरे बेशुमार दोस्त खड़े हैं हाथ फैलाए
कोई ख़बर नहीं जिनको
कि कौन-सा पहर अभी चल रहा है
और कौन गुज़र गया है अभी-अभी
सौंपना है माँ
उन्हें उनका अपना सपना
लौटाना है उन्हें उनकी गुलाबी अमानत
सहेज कर रखा हुआ है
जो तुमने बड़ी हिफ़ाज़त से
अपनी सबसे भीतर वाली जेब में!
ट्रंक में दिवंगत माँ की चोलू-बास्केट देखकर
- रचनाकार : अजेय
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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