तुम्हारी गली की धूल से सने हुए

tumhari gali ki dhool se sane hue

बलराम शुक्ल

बलराम शुक्ल

तुम्हारी गली की धूल से सने हुए

बलराम शुक्ल

और अधिकबलराम शुक्ल

     

    एक

    मेरे इन पैरों को नहीं चाहिए सुगंधित पाद्य जलों का अभिषेक
    ये दोनों तो वैसे ही ख़ूब चमक रहे हैं
    तुम्हारी गली की धूल से सने हुए।

    दो 

    मेरे माथे पर मोतियों से बने
    महँगे के आभूषण न पहनाए जाएँ
    यह तो तुम्हारी चौखट के पत्थर के घिसने से बने
    चिह्न से वैसे ही शोभा का घर बना हुआ है।

    तीन

    भौंरों की तरह काले मेरे बालों में
    सुगंध का छिड़काव मुझे प्रसन्न नहीं करता
    ये कुटिल केश तो तुम्हारी विरह-व्यथा की धूल से
    जटिल ही अच्छे लगते हैं।

    चार

    मेरे हाथ ख़ुश हो जाते हैं
    अगर तुम्हारा दिया दुख भी इन्हें कहीं मिल जाता है
    तुम्हारे अलावा किसी और से कुछ भी लेने का लांछन
    ये नहीं सह सकते।

    पाँच

    चंदन और कुमकुम से समृद्ध
    माथे का तिलक 
    मुझे उतना प्रसन्न नहीं करता
    जितना तुम्हारे चरणों की तनिक-सी धूल।

    छह

    मेरा गला ऐसा नहीं है कि इसका सम्मान
    महँगे हारों से किया जाए
    इसकी पूजा तो 
    तुम्हारे दासत्व की ज़ंजीर के कठिन घाव करते हैं।

    सात

    मेरे कानों को दो भड़कीले कर्णाभूषण
    तनिक भी सुशोभित नहीं करते
    इनकी सजावट तो है बस
    तुम्हारी दो बातों से।

    आठ

    मेरी ख़ानदानी समृद्धि है—
    गर्भ से ही तुम्हारा नौकर हो जाने का गौरव
    मेरी यह समृद्धि
    धिक्कार करती है
    धनपशुओं के बीच बहुत-सी वस्तुओं के स्वामी हो जाने को

    नौ

    मेरे प्रचंड पांडित्य की अधिकता
    बहुतों को आश्चर्यचकित कर देती है
    लेकिन मैं उसे तिनके बराबर भी नहीं मानता
    तुम्हारे प्रेम में जो मैंने भोलापन अर्जित किया है
    हे प्रिय!
    उसे मैं अपने जीवन की सबसे चतुर उपलब्धि मानता हूँ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : बलराम शुक्ल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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