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तुम्हारा संसार

tumhara sansar

कर्मदेव पाठक

कर्मदेव पाठक

तुम्हारा संसार

कर्मदेव पाठक

और अधिककर्मदेव पाठक

    मैं दिखाना चाहता हूँ

    तुम्हें अपनी कल्पनाओं का संसार

    जहाँ तुमसे ही सब कुछ घटित होगा

    जीवन और मरण

    सावन और पतझड़

    पुण्य और पाप

    मैत्री और शत्रुता

    सुख और दुख

    प्रेम और मोह

    मिलन और बिछोह।

    और जिसमें

    तुम होगी स्वामिनी

    और मैं दास तुम्हारा

    तुम्हारे चरणों में अर्पित

    पुष्प की भांति उज्जवल

    जिसे तुम सजाओगी

    अपने केशों में

    और जाग उठेगा मेरा भाग्य।

    पवित्र हो उठेगा मेरा मन

    तुम्हारे कान के पास

    अलकों में आभूषण की भाँति

    सजे होने से।

    तुम्हारे स्वर का सृजन करते ही

    उदय होगा सूर्य पूर्व दिशा में

    पक्षी पूर्वाएँगे तुम्हारे ही गीत

    हवाएँ सुगंधित अलकों से उलझ कर बहेंगी

    पुष्प तुम्हें देखने को खिलेंगे

    जल तुम में ही स्वयं को देखेगा

    वृक्ष झूमेंगे तुम्हें बलखाते देख

    काली घटाएँ शर्माएँगी

    तुम्हारे केशों को लहराते देख

    तारे उतरेंगे धरा पर

    तुम्हारे आभूषण बनने की ख़ातिर

    और चंदा बन जाएगा बिंदिया तुम्हारी

    बादल टुकड़ों में उतरेंगे फलक से

    तुम्हारी पैंजनिया बनने को

    कस्तूरी स्वयं को करेगी अधिक सुगंधित

    तुम्हारी उठती-गिरती श्वास से।

    दर्शन से तुम्हारे

    हर उठेंगे कष्ट दुखियारों के।

    और तुम्हारी हँसी से

    ऋतुएँ परिवर्तित होंगी संपूर्ण धरा पर

    तुम्हारे अधरों पे ठहर जाने को

    बादल से बिछोह करेंगी पानी की बूँदें।

    तुम्हारी मांसल देह के रंगों से

    चमक उठेंगे इंद्रधनुषी सप्तरंग

    तुम्हारे ही रंग में।

    तुम्हारी आँखों के इशारों से ही

    ग्रहों नक्षत्रों की चाल निहित होगी

    सृष्टि के सारे कार्य शुरू होंगे।

    तुमसे ही परिभाषित होगी

    सुंदरता की परिभाषा की पराकाष्ठा।

    रातों को तुम्हें सताएँगे जुगनू,

    और दिन में तुम्हारे इर्द गिर्द मंडराएँगी तितलियाँ।

    तुम्हारे कंगन की खनक से,

    जाग उठेंगे हज़ारों वर्षों से सोए हुए गहन वन

    और तुम्हारी पायल की छन छन से

    थिरक उठेंगे मोर अपने पंख फैलाए।

    तुम विचरण करोगी आगे

    और पीछे अनुसरण में होंगे देवता सारे।

    तुम्हारे पाँव पखारने को

    समुद्र और नदियों में होगा युद्ध।

    तुम्हारे सो जाने पर

    अस्त हो जाएगा सूर्य पश्चिम में।

    और तुम्हारे स्पर्श मात्र से

    महक उठेंगे पुष्प मुरझाए।

    चहक उठेंगी अलसाई कोकिल

    दहक उठेगी प्रेमाग्नि हर जीव में

    और मैं हो जाऊँगा तुम

    तुममें ही विलीन

    तुम्हारे अर्धांग-सा

    जीवन मृत्यु के चक्र से ऊपर

    परब्रह्म!

    स्रोत :
    • रचनाकार : कर्मदेव पाठक
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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