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तुम दरवाज़े पर खड़ी हो

tum darwaze par khaDi ho

अन्य

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तुम दरवाज़े पर खड़ी हो

तुम्हारा चेहरा दिख रहा है

तुम्हारा चेहरा मेरे चेहरे से एक ‘जज़्ब समय’ में बात कर रहा है

हम तस्वीरों जैसे तो नहीं हैं

तस्वीरों जैसे मृत तो नहीं

हम अपने-अपने दरवाज़े पर खड़े हैं

हमारी अपनी-अपनी आवाज़ है

साँसें हैं—बहुत पास-पास

मुझे ऐसा भ्रम होता है—भ्रम होता है मुझे

मैंने तुमसे इतना कुछ कहा, लेकिन हर बार मुझे मेरा कहा मेरे बारे में कहा सुनाई देता है

लगता है कि मैं तुम पर अपना झूठ लाद रहा हूँ

तुम उस बोझ को लेकर एक व्यस्त रेलवे स्टेशन पर भटक रही हो

ने दि बी ते

पेड़ों की आँखों से टपकते हैं आँसू…

जाने किसकी तलाश में,

क्यों ता है म…

स्रोत :
  • रचनाकार : आदित्य शुक्ल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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