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रक्तता से विरक्ति

raktata se virakti

विजयपाल सिंह बीदावत

अन्य

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विजयपाल सिंह बीदावत

रक्तता से विरक्ति

विजयपाल सिंह बीदावत

और अधिकविजयपाल सिंह बीदावत

    आसक्त हूँ में प्रकृति पर,

    प्रकृतिदत्त हर अमानवीय उपहार

    और उनकी प्रवृत्ति पर,

    सुदूर तक आँचल पसारे हरियाली

    नीलांबर में उड़ते विहग

    आच्छादित श्यामल घटाएँ

    चरते हुए पशु झुँड,

    खेतो में चलते हुए हल

    वातावरण में छाई पुष्पगंध,

    पेड़ों पर पके फल।

    मगर अनासक्त हूँ

    प्रकृतिदत्त एक जीव

    मानव और उसकी प्रवृत्ति पर

    क्योंकि उसकी हैवानियत

    इतना रक्त बहा चुकी है

    हरी भरी

    धूल धूसरित धरा भी

    छक कर नहा चुकी है।

    अब तो मैं हूँ

    लाल रंग से पूर्व परिचित-सा

    'सावन के अँधे का'

    भाव लिए किंचित-सा

    इसीलिए हर रक्त वर्ण वस्तु

    नज़र आने लगी भूतहा परछाई-सी।

    रक्तवासस यौवना

    उसके निर्दोष चेहरे की रक्तिम आभा

    प्राची में अरुणोदय वेला पर छाई रक्तिमा

    ललाट की शोभा बढ़ाता मांगलिक तिलक

    सरोवर में पुष्पित रक्तोल्पल

    सभी की छवि

    दृष्टिगत है घबराई-सी

    लगता है आतंकवादियों की बंदूक से छूटी गोली

    बेध गई है किसी को

    सभी आकृतियाँ लगती हैं

    स्रावित रक्त में नहाई-सी।

    प्रकृति मानव की रचयिता

    पर मानव प्रकृति का संहारक,

    कैसी विडंबना है?

    सच में आज का मतिभ्रष्ट मानव

    मौत पर इतना आसक्त हो गया है

    कि अपने ही रक्त से

    विरक्त हो गया है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : विजयपाल सिंह बीदावत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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