याद सब मेहनताने, छोड़े हुए काम और ग़रीब पूर्वज

yaad sab mehantane, chhoDe hue kaam aur gharib purwaj

गौरव सोलंकी

गौरव सोलंकी

याद सब मेहनताने, छोड़े हुए काम और ग़रीब पूर्वज

गौरव सोलंकी

और अधिकगौरव सोलंकी

    याद सब नक़्शे, घर, चौराहे

    यह भी कि कहाँ गड्ढा है कहाँ हैं लड़कियाँ

    कहाँ रोना चाहिए था और रोया नहीं

    कहाँ मारना चाहिए था और रोया

    कहाँ नहर में धकेला जा सकता था

    कहाँ नंगे होने के सपने आते थे याद

    कि कौन-सी कंपनी के बल्ब कौन-सी दुकान पर नहीं मिलते थे

    कितनी छत फाँदकर थी केबल की तार

    प्यार होने का चलन था

    सूरज कितना कम था, शादियाँ हर इतवार

    नदी कोई नहीं वहाँ और मैं सोचता उसे परी

    या लता, क्योंकि उसके भी रूप पढ़ाए जाते थे

    याद सब इश्तिहार, उनको बदलने वाले सब वार

    जैसे लौटना हो बार-बार

    पर लौटता नहीं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सौ साल फ़िदा (पृष्ठ 35)
    • रचनाकार : गौरव सोलंकी
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 2012

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