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तमाशा

tamasha

सुस्मिता पाठक

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और अधिकसुस्मिता पाठक

    तमाशा थिक

    मजमा थिक

    चद्दरिमे झाँपि अपन मुँह

    पड़ल अछि जमूरा

    चिचिआइत छटपटाइत अछि

    ओस्ताद! खोल हमर बन्हन

    नहि जमूरा, पड़ल रह चुपचाप

    बन्न कर आँखि

    तोरा देखबाक थोड़बे छौ

    तोरा तँ खाली तमाशा देखयबाक छौ

    चिचिआइत अछि जमूरा

    नहि ओस्ताद! ओम्हर देखियौ

    नाँगड़केँ पठाओल जा रहल अछि युद्ध लेल

    बौनाकेँ सातम आसमानपर

    बुद्धिमान-बलिष्ठ पठायल गेलाह जंगल

    सब चरबैत छथि राति-दिन बकरी

    चौँकैत अछि ओस्ताद

    पुछैत अछि छूटिते के कयलक एना

    जमूरा जल्दी कह

    अहीँ एना कयलहुँ ओस्ताद

    ओस्तादे एना कयलक, ओस्ताद

    जकरा हाथमे एखन शासन केर डोरि

    —तँ फेर उठ जमूरा

    स्वयं देख मजमोकेँ देखा

    खूब चिचिया हल्ला मचा...।

    स्रोत :
    • पुस्तक : परिचिति (पृष्ठ 28)
    • रचनाकार : सुस्मिता पाठक
    • प्रकाशन : किसुन संकल्प लोक
    • संस्करण : 1997

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