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तलवे

talve

आकाश वर्मा

अन्य

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और अधिकआकाश वर्मा

    तुम्हारा मस्तिष्क सोचता है

    और कहता है चलो

    तो चल पड़ते हो तुम

    साथ ही चल पड़ते हैं तुम्हारे तलवे

    जबकि उन्हें पता नहीं होता कि जाना किधर है

    यह बात पता रहती है केवल मस्तिष्क को

    तुम थक जाते हो चलते-चलते

    थक जाते हैं तुम्हारे पैर

    पैरों की, ऊँगलियाँ, हड्डियाँ और जाँघ

    और घुटने भी

    कभी-कभी तुम्हारा मस्तिष्क भी

    पर कभी नहीं थकते तुम्हारे तलवे

    वे तलवे जो बनाते हैं

    पैंरों की उँगलियों और एड़ियों के बीच

    एक धरती...एक दुनिया...

    एक घर...

    एक पूरी व्यवस्था आदमी होने की

    जहाँ तुम्हारा मस्तिष्क सोता रहता है

    दिखाता है मीठे-मीठे सपने, ढेर सारे

    और भ्रम बनाए रखता है

    सर्वश्रेष्ठ, सर्वोपरि होने का

    और तुम कहते हो—

    मैं भ्रम में नहीं रहता हूँ

    क्योंकि

    एक स्वस्थ और समझदार मस्तिष्क है मेरे पास

    जिससे

    बनाता हूँ दुनिया को रोज़ नया

    देता हूँ रोज़ नई गति

    और घूमती धरती को अपने हिसाब से घुमाता हूँ

    लेकिन तुम भूल जाते हो

    तलवे की बीच की हवाओं पर

    खड़ा है तुम्हारा स्वस्थ, समझदार

    और भौतिक संसार का निर्माता मस्तिष्क

    और हाँ तुम सही ही हो कि मेरा मूल्य

    तुम्हारे तलवे से अधिक नहीं

    मगर जिनके तलवे नहीं होते

    वे जानवर होते हैं

    और सबसे पहले पैरों में तलवा बनाया

    आदिम वानर ने

    आदमी बनने के लिए

    स्रोत :
    • रचनाकार : आकाश वर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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