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मँजूर,

दुनिया का नूर

पुल बनावइ

दुइ छ्वारन का ज्वारइ

दुइ खंडन का मिलावइ

एकु बनावइ।

वहु बांध बनावइ

नद्दिन का मोड़ि देइ,

बड़-बड़ पहाड़न का

छन भर मा

तोड़ि देइ

सैतान की आंत अस

सिलाखण्ड फोड़ि देइ,

सुर्ज का चुनौती देइ

पानिउ ते परगासु भरइ

रातिउ का दिनु करइ

वहि की गति सुर्जन के आर-पार

छितिज के वहि पार

चन्द्रलोक लहु मथा

मंगलउ तकु थका

हरइ सब की व्यथा

यहइ वहि की कथा

वहि मा अकूत बूत

मुला तुमरे बदि अछूत

कबहुँ कहउ भूत

कबहुँ अवधूत

मुला वहु

देस का साँचा सपूत।

वहु तौ सबु बनावति

बनावट पर चमक चढ़ावति

मुलम्मा मढ़ति

सिर्फ धरमु गढ़ति

वहु तौ छ्वाट मनई,

यहु तौ म्वाट मनई करति

स्रोत :
  • पुस्तक : घास के घरउँदे (पृष्ठ 100)
  • रचनाकार : श्यामसुंदर मिश्र ‘मधुप’
  • प्रकाशन : आत्माराम एण्ड संस, कश्मीरी गेट, दिल्ली
  • संस्करण : 1991

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