सपनों पर किसी का ज़ोर नहीं
न तुम्हारा
न मेरा
और न ही किसी और का
कुछ भी हो सकता है वहाँ
बर्फ़-सी ठंडी आग
या जलता हुआ पानी
यह भी हो सकता है कि
मैं डालूँ अपनी क़मीज़ की जेब में हाथ
और निकाल लूँ
हहराता समुद्र—पूरा का पूरा
मैं खोलूँ मुट्ठी
और रख दूँ तुम्हारे सामने विराट हिमालय
अब देखो—
मैंने देखा है एक सपना—
मैं एक छोटा-सा बच्चा लटकाए हुए कंधे पर स्कूल बैग
अपने पिता की उँगली थामे
भाग रहा हूँ स्कूल की घंटी के सहारे
भरी हुई क्लास में
सबसे आगे बैंच पर मैं
और तुम मेरी टीचर!
कितना अजीब-सा घूरती हुई तुम मुझे
और मैं झिझककर करता हुआ
आँखें नीची
मैंने देखा—‘दो और दो होते हुए पाँच’
और ख़रगोश वाली कहानी में बंदर वाली कविता का स्वाद
तुम पढ़ा रही थीं—‘ए' फ़ॉर ‘एप्पल’
और मुझे सुनाई दिया ‘प' से ‘प्यार’
तुम फटकारती थीं छड़ी
सिहरता था मैं
खीझकर तुमने उमेठे मेरे कान
सपनों के ढेर सारे जादुई नीले फूलों के बीच ही
मैंने देखा—मेरा सपना,
खेलता हुआ मुझसे!
जब बड़े-बड़े अंडों से भरा मेरा परीक्षाफल देते हुए
तुमने कहा मुझसे—
‘फ़ेल हो गए हो तुम हज़ारवीं बार’
और इतना कहते समय मैंने देखा—
तुम्हारी बड़ी-बड़ी आँखों में दमकता हुआ
पृथ्वी भर प्यार
और मुझे महसूस हुआ
कि वहीं-कहीं आस-पास शहद का छत्ता गुनगुना रहा था
धीमे से
हज़ार-हज़ार फूलों के
सपनों का गीत!
- रचनाकार : राजेंद्र कैड़ा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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