मैं बनूँगा गुलमोहर
अच्छा सुनो,
यदि प्रेम हो,
तो संकोच न करना।
कह देना नि:शंक :
'मैं प्रेम में हूँ!'
मुझसे न कह सको तो
कह देना किसी दरख़्त से
या मुझी को मान लेना,
अमलतास का एक पेड़।
कह देना
क्योंकि कहना ज़रूरी होता है
होने से एक रत्ती अधिक
एक सूत ज़्यादह
होना यूँ तो मुकम्मल है पर नाकाफ़ी
मुकम्मल काफ़ी भी हो
ये ज़रूरी तो नहीं!
अपने को पूरे से ज़्यादह बनाना
अपने होने को कहना
कहने के चंद्रमा से उसे आलोकना
दीठ को देना एक दीपती हुई दूरी
थोड़ा दूर तलक व्यापना।
क्योंकि सबसे अकेला वो होता है
जो होता है अकेला अपने प्यार के साथ
उसे कह देना यूँ कि तारे तक आ जाएँ उसकी ज़द में
सुदूर से भी परे झपकाते पलकें
अपने अकेलेपन को एक बेछोर पसार देना
क्योंकि और अकेला हो जाना बेहतर है
केवल अकेला होने से!
मत रखना दुविधा
कह देना कि प्यार है
मुझसे न कह सको तो
कह देना किसी दरख़्त से
या मुझी को मान लेना
चिनार का एक पेड़!
ये एक दस्तूर है कि राज़दार बनें दरख़्त
और ठहरें रहें ख़ामोश हज़ार आवाज़ों और तरानों के साथ
के ये एक रवायत है।
तुम्हारी आँखों में
परिंदों की विकल वापसी से भरी साँझ है
उनके लिए मैं बनूँगा नीड़
तुम्हारे कानों के नीले छल्ले
नदियों की नींद में काँपते हैं
उनके लिए मैं बनूँगा लहर
जब प्रेम में होओगी तुम और
कहना चाहोगी अपना होना
मैं बनूँगा गुलमोहर।
- रचनाकार : सुशोभित
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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