रोते हुए कहा उसने क्षोभ से

rote hue kaha usne kshaobh se

प्रीति चौधरी

प्रीति चौधरी

रोते हुए कहा उसने क्षोभ से

प्रीति चौधरी

और अधिकप्रीति चौधरी

    हे मेरे जीवन!

    समाप्त हो गया धैर्य

    अब मरना ही होगा

    जीने की ज़लालत और नहीं

    आलमारी में ही थी पिस्तौल लाइसेंसी

    उसने कहा :

    मैं किस दिन-रात के लिए हूँ सखी

    इसी जान पर बन आने वाले दिन-रात के लिए ही न!

    जाकर मार दो उन्हें पर मरो मत

    उसने बंद कर दिया रोना और

    पिस्तौल को देखती रही देर तक

    तय किया कि

    पिस्तौल को भी सोचने का

    भरपूर मौक़ा देना चाहिए

    पिस्तौल ने कमरे में रखी किताबों को निहारा

    कविताओं की किताबों के पास थोड़ा ठिठकी

    बुद्ध की प्रतिमा के पास आँखें चुराई उसने

    और स्टडी से बाहर निकल गई

    शयनकक्ष में मुस्कुराती किताबों में से एक

    गिर गई शरारत से ठीक पिस्तौल के ऊपर

    किताब वही गिरी

    जो प्रिय थी बहुत

    एक कवि की किताब

    रसूल हमज़ातोव वाली

    रसूल ने कहा

    एक बार मुझे और छुओ और

    मेरी ख़ुशबू में नहा लो

    चलो घूम आओ मेरा गाँव त्सादा मेरे साथ

    इसके बाद निकल जाना लेकर अपनी पिस्तौल

    छलनी कर देना उन्हें

    मुझे पता था अपने गाँव त्सादा ले जाना कवि की चाल है

    वहाँ की वनस्पतियाँ सोख लेंगी मेरा रोष

    वहाँ की हवा कर देगी मेरा कलेजा नरम

    रसूल न!

    माफ़ करो नहीं जाना मुझे दाग़िस्तान।

    मार देना था मुझे

    मेरी पिस्तौल गोलियों के साथ तैयार ही थी कि

    फिर एक कवि ने रास्ता रोक लिया

    और बेगमपुरा चलने की बात करने लगा

    बड़ी मुश्किल से कबीर और तुलसी को

    अनसुना किया था कि मुक्तिबोध मिल गए

    कहाँ हृदय का आयतन बढ़ाने की बात थी

    उनके ओछेपन से आपको और गहरा होना था

    और कहाँ आपके हाथ में ये पिस्तौल

    अब मैं कैसे बताऊँ गजानन माधव मुक्तिबोध जी कि

    कितनी मुश्किल से मिला था ये पिस्तौल का लाइसेंस

    अब जब फ़ैसले की घड़ी है

    मुझे कुछ कर गुज़रना है तो

    दुनिया के बड़े सेनापतियों, राज्याध्यक्षों

    और उस 'गॉडफ़ादर' बने मार्लन ब्रैंडो की

    बजाय ये कवि क्यों कर रहे हैं बहस मुझसे

    बहस क्या कर रहे हैं

    कालिदास तो कातर होकर रो पड़े हैं

    सदियों पहले उज्जयिनी में भी

    सत्ताएँ निरंकुश थी

    ज़ालिम बाबू वहाँ भी थे

    स्त्रियों का दिल दुखता था

    पर पिस्तौल किसी के पास नहीं थी

    जम्बूद्वीप, आर्यावर्त के भारत खंड में

    आज किताबें उदास और कविताएँ निरीह हैं

    ये गद्य लिखने का समय है

    विशेषकर इतिहास लिखने का

    कवियों जाओ तुम!

    आज का दिन सबसे उदास

    इसलिए नहीं है कि कुछ कवियों की हार हुई

    और करुणा की जगह सामूहिक हिंसा विजेता घोषित हुई है

    आज का दिन सबसे अवसाद भरा है कि

    एक स्त्री

    जो कल तक पूरी मनुष्य थी,

    उसके पर्स में

    कविता की जगह पिस्तौल रखी गई।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रीति चौधरी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए