स्त्रियाँ

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पल्लवी मंडल

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    स्त्रियों को इस तरह से ढक रखा है उपमाओं ने

    जैसे यथार्थ को रखती है शुद्धता और पैमाना।

    मुझे लगता है कि कभी ऐसी कविता लिखी जाएगी

    जो तथा कथित सभी उपमाओं पर भारी होगी

    जैसे रात के अंधेरे पर सुबह का उजाला...!

    ऐसी कविता जो उसकी देह पर नहीं

    उसकी दशाओं पर बात करे

    इतनी प्रत्यक्ष हो कि वह बदलाव लाए,

    जो माना जाए नि:स्वार्थ होकर.!

    कभी तो परिवर्तन होगी

    उसकी ख़ूबसूरती के पैमाने में.!

    सोचती हूँ ऐसी कविता तो आएगी ही

    जो जला देगी उसकी भीतरी तमस में

    उम्मीद का एक छोटा-सा भी दीया.!

    ऐसी कविताएँ नहीं होगी वृक्षों की तरह,

    जिस पर फल सदृश लगे हो कल्पना

    या बंदिशों की पहचान

    इस परिधि से बाहर निकलेगी लड़कियाँ?

    ज़रूर निकलेगी...!

    लेकिन सहारे से वह निकल नहीं पाएँगी

    उन्हें ख़ुद के बूते से ख़ुद से ही

    निकलना होगा

    ऐसी बद-बदन वाले उपमाओं के ऊपर

    अपने यथार्थ और दशाओं वाली कविताओं को

    आत्मविश्वास से उस पर जड़ से लगाना होगा...!

    जिस तरह एक व्यक्ति के ईमानदार होने से

    सभी व्यक्ति ईमानदार नहीं होते

    ठीक उसी तरह

    एक स्त्री के बोलने से

    सभी स्त्रियों की बात नहीं होती...!

    अपने हिस्से की मुक्ति ख़ुद से संभव करोगी आप

    तभी जाकर आएगी मानव इतिहास में

    पूर्ण बदलाव...!!

    स्रोत :
    • रचनाकार : पल्लवी मंडल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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