नारी

nari

राहुल देहलवी

और अधिकराहुल देहलवी

    हे नारी क्षमा करो

    तुम्हारा आभार नहीं चुका सकता

    मैं बस अपने जज़्बातों को शब्द की शक्ल दे सकता हूँ,

    मैं तुम जिस भयानक दौर से आई हो वो उस जंगल की तरह है

    जहाँ हैवानियत की हद पार करना बिलकुल आम-सी बात थी।

    यहीं पर लाखो महिलाए की चिताओं की राख पड़ी थी

    जिन्हें सती होने का सौभाग्य कहकर छला गया था

    यहाँ औरतों के शरीर बस मर्दों की प्यास बुझाने के काम आते थे,

    यहाँ आशारूपी सूरज नहीं था,

    बल्कि सियार की ख़ौफ़ भरी आवाज़ के बीच

    अमावस्या का काला चाँद डरावनी हँसी हस रहा था,

    इस जंगल में महिलाएँ मौजूद थी

    पर सिर्फ़ प्रजनन के लिए उनके मन की भावना को

    किसी पुराने संदूक में भरकर ज़मीन में दफ़ना दिया गया था

    इंसानियत यहाँ इसलिए शर्मशार हो रही थी

    क्योंकि ये सब समाज की स्वीकृति से हो रहा था,

    जो हुआ उस पर सिर्फ़ शोक जता सकता हूँ

    मैं नारी तुम्हारा आभार नहीं चुका सकता मैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : राहुल देहलवी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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