उनकी चुप

unki chup

प्रतिभा कटियार

और अधिकप्रतिभा कटियार

    पढ़ती हूँ उनकी चुप जो रहते हैं आस-पास

    दीखते हैं अक्सर हँसते हुए सहज से

    कभी-कभार चुप हो जाते हैं

    फिर लौट आते हैं सहजता ओढ़कर

    पढ़ती हूँ उनके भीतर की उथल-पुथल

    जिसे भीतर दबाए वो जुटे हैं

    इस देश, इस समाज को बेहतर बनाने में

    वो देश जो अब उन्हें

    अपना मानने से इंकार करने लगा है

    वो देश जिससे उन्हें भी है उतना ही प्यार

    जितना है हम सबको

    लेकिन उनका देश प्रेम संदिग्ध हो गया है अचानक

    उन्हें प्रमाण देना होता है पल-पल

    अपनी देशभक्ति का

    उन्हें पाकिस्तान के ख़िलाफ़ नारे लगाने को

    मजबूर किया जाता है

    जबकि वो असल में नहीं लगाना चाहते

    किसी भी देश या व्यक्ति के ख़िलाफ़ नारे

    कि नफ़रत से नफ़रत को कैसे जीत सकता है कोई

    ग़लती से भी पाकिस्तानी गायक, खिलाड़ी या साहित्य

    की तारीफ़ से उन्हें सायास बचना होता है

    उन्हें किराए के मकान आसानी से नहीं मिलते

    यात्राओं में उनकी जाँच ज़्यादा मुस्तैदी से की जाती है

    वो फ़ेसबुक, ट्विटर पर कुछ लिखने से बचते हैं

    बच्चों को जल्दी से सुला देते हैं

    बीवी की आँख में छाए डर का सामना नहीं कर पाते

    किसी किताब में गड़ा देते हैं आँखें

    गुझिया और सिंवई का स्वाद साथ में लेते हुए

    बड़े हुए थे जिन दोस्तों के साथ

    उनके हाथ अब कंधे पर महसूस नहीं होते

    पढ़ती हूँ उनके भीतर का संसार

    जिसे वो लिख नहीं पाएँगे कभी

    जिसे छुपाने के लिए

    वो मुस्कुराते रहेंगे आस-पास ही।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रतिभा कटियार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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