महनीय मौन

mahniy maun

अर्पण कुमार

अर्पण कुमार

महनीय मौन

अर्पण कुमार

और अधिकअर्पण कुमार

    मैं उन्हें फ़ोन करता हूँ

    धीर-गंभीर आवाज़ में वे पूछते हैं—कौन

    बताता हूँ अपना नाम और देता हूँ परिचय

    जिसके लिए संपर्क किया

    बताता हूँ वह बात भी

    वे कहते हैं पूरी गंभीरता से—कुछ दिन बाद बात करेंगे

    कुछ दिनों में कुछ दिन पूरे हो जाते हैं

    मैं उन्हें पुनः फ़ोन करता हूँ

    आवाज़ की अचंचलता बनी रहती है

    अजनबियत भी

    सवाल फिर से वही—कौन

    जवाब में नाम, परिचय और काम

    सब बता देता हूँ एक साँस में

    गीता-ज्ञान साधा निरपेक्ष और संजीदा स्वर

    आख़िर मचल कैसे सकता है

    मेरे उत्साह और आवेग बने रहें अपनी जगह

    वह भला इनसे दो-चार कैसे हो सकता है

    जवाब मिलता है—यात्रा में हूँ, कुछ दिनों बाद बात करेंगे

    बीतती है उनकी यात्रा-अवधि

    फ़ोन करता हूँ उन्हें पुनः पुनः

    चिंतनशील स्वर को

    किसी एंप्लीफ़ायर की ज़रूरत हो शायद

    वे धीमे से पूछते हैं—कौन

    मैं पुनः पुनः पुनः बतलाता हूँ

    वे पुन: पुनः पुनः रहते हैं मौन।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अर्पण कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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