शेष परीक्षा
shesh pariksha
ई जे नगारा बाजि रहल अछि—
दिन बदलबाक अवसर आयल अछि
एहि झड़ित युगमे।
निर्मम नूतन अध्यायकेर प्रारम्भ ले'
भऽ रहल अछि ई अपव्यय!
निष्ठुर अन्याय भूत
हा, ई भविष्य दूत
कृपणताक पाथरकेँ ठेलनिहार बाढ़ि
ऊसरक ब्यर्थ ई वेष बदलि रहल अछि।
नवीन मटि तकर जगह भरैत अछि
जनमल मृत-माटि-स्तरक सङ नहा
लुप्त गह्वर भरैत अछि
मरुभूमि पटा घास जनमैत अछि
दुर्बल खेतक चिर-दुर्बलता
निःशब्द जेना ई रहय बौक,
हृदयसँ मृतक किन्तु
कोना मुइल घरमे अन्न ई अनैत अछि?
अपव्ययक झड़की जखन लगैत छैक
भरारक दुआरि खोलि चार उड़ा दैत अछि।
अपघातक धक्कासँ शरीरकेँ छुबैत,
हठात् अपमृत्युक संकेतपर नव फसिल
नव खेतमे अबैत अछि।
शेष परीक्षा
दुर्दैव निर्णय रहत
जीर्ण-युगक संचयसँ की रहत की जायत?
आइ भेल ई जीर्णताक चिन्ह
तँहि अछि ई नगारा ढढनाकऽ बाजि रहल।
- पुस्तक : मैथिलीक नव कविता (पृष्ठ 72)
- संपादक : रामकृष्ण झा ‘किसुन’
- रचनाकार : हंसराज
- प्रकाशन : सांस्कृतिक विभाग, सुपौल, बिहार
- संस्करण : 1971
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