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सार्वजनिक स्मृति

sarvajnik smriti

मनीषा जोषी

मनीषा जोषी

सार्वजनिक स्मृति

मनीषा जोषी

और अधिकमनीषा जोषी

    सार्वजनिक शौचालयों का

    क्या संबंध स्मृति से

    लेकिन जब बढ़ती उम्र में याद आती है

    बचपन के उस गाँव की

    तब याद जाता है वह बस-स्टेशन भी

    जहाँ के शौचालय की दीवारों पर

    लिखी हुई रहती थीं अनेकानेक गालियाँ।

    उस वक़्त समझ नहीं आते थे उन शब्दों के अर्थ

    और आज भी कहाँ समझ पाई उनकी व्युत्पत्ति

    पर अब विस्मृति के क़रीब इस उम्र में

    स्मृतिपट पर नज़र रहे हैं साफ़

    वे हस्तलिखित अक्षर

    जो किसी के भी हो सकते थे।

    उन प्रवाही अक्षरों की स्याही

    जिसमें मिला हुआ था बहुत कुछ—

    माँ की योनि, बहन के स्तन,

    पिता का शिश्न, भाई का हस्तमैथुन…

    या फिर यूँ कहिए कि

    उसमें मिला हुआ था कुछ और भी—

    माँ का दूसरी शादी कर लेना

    बहन का प्रेमी के साथ घर से भाग जाना

    पिता का किसी नाबालिग़ पर ज़बरदस्ती करना

    भाई का अपनी प्रेमिका को गर्भवती बनाकर छोड़ देना…

    भाषा की हिंसा

    और शरीर की हिंसा के दरमियान

    कहीं खो गए जो अर्थ

    वे अब लावारिस बच्चों की तरह

    घूमते नज़र आते हैं दिन-रात

    अख़बारों की ख़बरों में

    राजनेताओें के वचनों में

    साहित्यिक व्यंजनाओं में

    फ़िल्मों में दो प्रेमियों के वादों में।

    भाषा की कच्ची दीवार पर

    खड़ी हुई है मेरी स्मृति

    जो कभी भी ढह जा सकती है।

    सचमुच भाषा से अधिक हिंसक

    और कुछ नहीं है स्मृति के लिए।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनीषा जोषी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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