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सरलीकरण

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व्योमेश शुक्ल

अन्य

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व्योमेश शुक्ल

सरलीकरण

व्योमेश शुक्ल

और अधिकव्योमेश शुक्ल

    कुछ दृश्य कुछ आवाज़ें अकारण याद हैं

    बेतुकी यादों का विचित्र एलबम होता होगा हरेक के पास

    88 में सुनी गई एक आदमी की आवाज़ इसलिए याद है कि मेरे मामा से मिलती है

    टाटा मेमोरियल कैंसर अस्पताल के बाहर निर्माणाधीन इमारत के धूसर परिसर में व्यर्थ पड़ा

    एक पत्थरटुकड़ा याद है जहाँ एक बार जीवन में बाल कटवाया वह सैलून

    याद है जूतों को पार करती हुई एक भयंकर तलवागलाऊ ठंड याद है

    सुने गए कई कवि सम्मेलन कई मंत्रोच्चार कई सोहर विवाहगीत आदि याद हैं

    इसी बीच बहुत कुछ याद रखने लायक़ मैं और लोग भूल गए

    यदि यादों का फ़ंक्शन सबके लिए ऐसे ही काम करता हो तो

    हमारा ज़रूरी दूसरों को व्यर्थ लगता हुआ अकारण याद होगा

    इस आधार पर यह सरलीकरण किया जाना अस्वाभाविक नहीं है कि संसार

    और समय की सभी व्यर्थ अव्यर्थ चीज़ें किसी किसी को

    याद हैं या याद थीं

    या

    याद रहेंगी

    स्रोत :
    • पुस्तक : फिर भी कुछ लोग (पृष्ठ 24)
    • रचनाकार : व्योमेश शुक्ल
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2009

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